1200 साल पुराना है बरनवाल वैश्य समाज का इतिहास - जयप्रकाश बरनवाल

सिकन्दर पुर, बलिया। उत्तर प्रदेशीय बरनवाल वैश्य सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष जयप्रकाश बरनवाल ने बरनवाल समाज के इतिहास पर चर्चा करते हुए कहा कि 1871 ईस्वी में प्रकाशित भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की पुस्तक अग्रवालों की उत्पत्ति में अग्रवालों की वंश परम्परा के लिए मुख्य आधार एक परम्परा में समाधि के दो पुत्रों में प्रथम पुत्र गुणाधीश से बरन और द्वितीय पुत्र मोहन से अग्रसेन की उत्पत्ति दिखाई गयी है। इतिहास के पन्नों की मानें शतो महाराजा अहिवरन शहर बरन (बुलंदशहर) के संस्थापक और बरनवाल समाज के आदि पुरुष थे। जिनका जन्म 26 दिसम्बर को हुआ। उनकी यादगार में हम प्रत्येक वर्ष जयंती मनाते है। यह भी कहा कि बरनवाल समाज के गरीब, लाचार तथा बेसहारों के आर्थिक सहयोग के लिए प्रदेश स्तर पर बरनवाल कल्याण कोष का गठन हो चुका है।
स्थानीय नगर के नगरा मार्ग स्थित बरनवाल मैरेज हाल में शुक्रवार की शाम नगर की बरनवाल सेवा समिति की ओर से आयोजित महाराजा अहिबरन जयन्ती समारोह में उत्तर प्रदेशीय बरनवाल बैश्य सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष जयप्रकाश बरनवाल बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
उन्होंने बरनवाल समाज की संरचना की चर्चा करते हुए कहा कि आधुनिक इतिहास के 14वीं शताब्दी में मुहम्मद तुगलक के आतंक से जब जबरन धर्म परिवर्तन के कारण अधिकांश बरनवाल जाति के लोगों ने अपना घर छोड़ गांवों को आसरा बनाना ज्यादा सुरक्षित समझा था और घीरे-धीरे विभिन्न रोजगार के साथ फैलते गये। उस समय यातायात और संचार के साधन आज की तरह नहीं थे। जिसके चलते उनके आपस के सम्बन्ध टूटते गये।
उन्होंने आगे कहा कि पश्चिमी उ.प्र. के बरनवालों ने सबसे पहले 1895 में सहारनपुर में चतुर्थ बरनवाल वैश्य सम्मेलन किया। लाला भगवती प्रसाद ‘‘बरन‘‘, मुंशी दुर्गा प्रसाद मुरादाबाद ने पूरब और पश्चिम के बरनवालों से पत्र व्यवहार करना शुरु किया और बासुदेव प्रसाद, बाबू गंगा प्रसाद रईस रसड़ा, बलिया कोठी में गौरी शंकर, लालजी रईस रसड़ा की अध्यक्षता में हाजीपुर, मुंगेर, रसड़ा, जाफराबाद, सहसराव, आजमगढ़, मऊ, बनारस, बुलन्दशहर, सम्भल, सराय सरीन, तथा मुरादाबाद से बरनवालों को शामिल करने की बात हुई और उस बैठक में श्री भारत वर्षीय बरनवाल वैश्य सभा का गठन हुआ था।
मुख्य अतिथि ने कहा कि इतिहास के अनुसार महाराजा अहिवरन बुलन्दशहर के राजा थे। जिनका प्राचीन नाम बरन था। वह एक सूर्यवंशी राजपूत थे। रिकार्ड के अनुसार इसका इतिहास करीब 1200 वर्ष पुराना है। इसकी स्थापना अहिबरन नाम के राजपूत ने की थी। बुलन्द शहर पर उन्होंने बरन टावर की नींव रखी थी। राजा अहिबरन ने बुलन्द शहर में एक सुरक्षित किले का निर्माण भी कराया था। जिसे ऊपर कोट कहा जाता रहा है। इस किले के चारों ओर सुरक्षा के लिए नहर का निर्माण भी था। जिसमें इस ऊपर कोट के पास से ही काली नदी के जल से इसे भरा जाता था। राजा अहिबरन ने इस सुरक्षित कोट में अपनी आराध्या कुल देवी मां काली के भव्य मंदिर की स्थापना की थी।
अंत में उन्होंने महाराजा अहिबरन जी की जयंती की सभी को बधाई एवं शुभकामनाएं देते हुए प्रत्येक वर्ष इस समारोह को और भी भव्य तरीके से मनाये जाने की अपील की।
समारोह के विशिष्ट अतिथि नगर पंचायत सिकन्दर पुर के चेयरमैन प्रतिनिधि संजय जायसवाल ने कहा कि किसी भी महापुरुष की जयंती एक खुशी का पर्व है। इसे मनोयोग से उस आदि पुरुष की शान में मनाया जाना चाहिए। उन्होंने समाज के गरीब, कमजोर एवं बेसहारा परिवारों की मदद किये जाने पर जोर दिया। कहा कि यह कार्य किसी भी संगठन के दायित्व में आता है।
समारोह की औपचारिक शुरुआत मुख्य अतिथि जयप्रकाश बरनवाल द्वारा महाराजा अहिबरन जी के चित्र पर माल्यार्पण, पूजन-अर्चन, आरती एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुई।
बरनवाल समाज के बच्चों ने विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों को प्रस्तुत किया। समारोह के आयोजक बरनवाल सेवा समिति ने अपने मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि सहित अनेक आमंत्रित अतिथियों को माला पहनाकर अंगवस्त्रम् से सम्मानित किया। समारोह में बरनवाल समाज के महिला, पुरुष व बच्चे सैकड़ों की संख्या में मौजूद रहे।
इस मौके पर मनोज बरनवाल, दुर्गा प्रसाद बरनवाल "मिंटू" (रसड़ा), रमेश बरनवाल (भटनी), अखिलेश बरनवाल (बेल्थरा रोड) एवं स्थानीय समिति की ओर से उपाध्यक्ष ओमजी बरनवाल, महामंत्री अरविन्द उर्फ झप्पू, कोषाध्यक्ष पारस बर्नवाल, मंत्री राकेश बरनवाल, सूचना मंत्री लल्लन जी, संगठन मंत्री राजेश बरनवाल के अलावा अरविन्द बरनवाल, संजय बरनवाल, राजेश बरनवाल, अवनीश बरनवाल एवं अरुण बरनवाल आदि मौजूद रहे। अध्यक्षता समिति के अध्यक्ष अजय कुमार बब्लू एवं संचालन विनोद कुमार गुप्ता ने किया।

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